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उत्तराखंड में आईएएस और आईपीएस अफसरों की करोड़ों की जमीनों को लेकर क्यों चल रहा विवाद, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून। उत्तराखंड में उषा कॉलोनी की तर्ज पर पौंधा प्रेमनगर क्षेत्र में कुछ आईएएस, आईपीएस और पीसीएस अफसरों की निजी आवासीय कॉलोनी बन रही है। इस कॉलोनी में उत्तराखंड और अन्य राज्यों के अफसरों ने इन्वेस्टमेंट किया है। लेकिन कुछ दिनों से इस कॉलोनी को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह की चर्चाएं चल रही है। इनमें एक वकील द्वारा कुछ पुराने दस्तावेज को आधार बताते हुए फर्जीवाड़े के आरोप लगाए हैं। वहीं, प्रमोटर ने अपने अधिवक्ताओं के मार्फत पत्रकार वार्ता बुलाई और पूरे मामले को लेकर काफी हद तक स्थिति स्पष्ट कर दी है। बहरहाल राजधानी में नौकरशाहों की एक और पॉश कॉलोनी के निर्माण को लेकर तीसरे पक्ष के बीच रार की नौबत क्यों आन पड़ी, इसे लेकर भी सवाल उठने लाजमी हैं। बहरहाल यदि कॉलोनी का निर्माण कानून सही तरीके से हो रहा तो किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। यदि यहां कुछ गड़बड़ी है तो इसे लेकर पहले खरीदार और फिर प्रशासन को आगे आना होगा। ताकि सही गलत की स्थिति स्पष्ट हो सके।

दिशा ग्रीन और दिशा फॉरेस्ट से जुड़ा मामला

दरअसल, प्रेमनगर क्षेत्र में दिशा ग्रीन और दिशा फॉरेस्ट के नाम से हाउसिंग सोसायटी को लेकर (भूखंड विकास परियोजना) प्रदेश के तमाम आईएएस-आईपीएस अधिकारियों समेत अन्य नौकरशाहों ने प्लाट खरीदे हैं। यहां करीब 150 बीघा जमीन पर आलीशान हाउसिंग सोसायटी तैयार होनी है। कुछ का काम भी चल रहा है। ऐसे में इस सोसायटी को लेकर एक अधिवक्ता ने कुछ दस्तावेज लेकर विवाद बताते हुए सोशल मीडिया में वॉयरल कर दिए। हालांकि अधिकांश दस्तावेज दो से तीन साल पुराने हैं। लेकिन इनमें भी जमीन विवादित होने के कोई प्रमाण नहीं है। ऐसे में इस सोसायटी को कौन और किस मंशा के साथ विवादित बनाना चाहता है। यह सवाल प्लॉटेड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के प्रमोटर को परेशान कर रहा है। सोशल मीडिया में मामला वॉयरल होने के बाद चिंतित प्रमोटर इंद्र सिंह बिष्ट ने आज अपने अधिवक्ताओं के मार्फत मीडिया के समक्ष सोसायटी को लेकर स्थिति स्पष्ट की। साथ ही दावा किया कि सभी नियमों का पालन कर न सिर्फ भूखंड क्रय विक्रय किये गए, बल्कि इनका विकास भी सभी मानकों के अंतर्गत किया गया है।

147 बीघा पर बन रही सोसायटी

प्रमोटर इंद्र सिंह बिष्ट के अधिवक्ताओं अमित वालिया व सचिन शर्मा ने दिशा प्रोजेक्ट को लेकर मीडिया को बताया कि गत दिनों कुछ लोगों ने गिरोहबंद होकर गलत मंशा के साथ परियोजना पर न सिर्फ साजिश के तहत बेबुनियाद आरोप लगाए, बल्कि परियोजना और प्रमोटर बिष्ट की छवि को धूमिल करने का भी प्रयास किया गया है। प्लाटेड डेवलपमेंट के क्षेत्रफल को 300 बीघा बताया जा रहा है, जबकि दोनों परियोजना की कुल भूमि 147 बीघा है। समस्त भूमि में सरकार या गोल्डन फॉरेस्ट की भूमि को कब्जे में नहीं लिया गया है। प्रोजेक्ट के अधिवक्ताओं ने जानकारी दी कि परियोजना में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण से ले-आउट पास कराया गया है और रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी में भी परियोजना का पंजीकरण कराया गया है।

भू-उपयोग बदलने की नहीं आवश्यकता

परियोजना में अनुसूचित जाति या जनजाति के किसी भी व्यक्ति की भूमि अवैधानिक ढंग से अर्जित नहीं की गई है। उन्होंने बताया कि जमींदारी विनाश अधिनियम में उत्तराखंड शासन ने धारा 143 (ख) जोड़ी है, जिसमें सपष्ट किया गया है कि जहां भी किसी विकास प्राधिकरण का मास्टर प्लान (महायोजना) लागू है, वहां कृषि भूखंड को अकृषि/आबादी घोषित करने की आवश्यकता नहीं होगी। मास्टर प्लान में इस परियोजना का भू-उपयोग अकृषि है, लिहाजा यहां भूमि अंतरण को लेकर उठाए गए सवाल स्वतः ही निराधार साबित हो जाते हैं। क्योंकि, इसमें जेड-ए एक्ट के प्रावधान लागू ही नहीं किए जा सकते हैं।

30 पेड़ों की कटान की ली अनुमति

पत्रकार वार्ता में कहा गया कि परियोजना को विवादित बनाने के लिए कुछ लोग 1500 पेड़ों के कटान की अफवाह फैला रहे हैं। जबकि भूमि क्रय किए जाने के दौरान जमीन पर 25 से 30 पेड़ खड़े थे, जिन्हें काटने के लिए विधिवत अनुमति ली गई है। इस तरह पेड़ों के अवैध रूप से कटान का आरोप भी निराधार साबित हो जाता है।

सर्किल रेट के आधार पर दी स्टाम्प ड्यूटी

प्रमोटर आईएस बिष्ट की तरफ से कहा गया कि परियोजना में स्टांप चोरी के बेबुनियाद आरोप कुछ लोग गलत नीयत के चलते लगा रहे हैं। सच्चाई यह है कि स्टांप शुल्क के रूप में सरकार को अब तक 1.35 करोड़ रुपये अदा किए जा चुके हैं। एक भी रुपये की स्टांप चोरी नहीं की गई है। यदि किसी जांच में स्टांप की कमी पाई जाती है तो वह उसकी भरपाई करने के लिए हमेशा तैयार हैं।

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