आदिकैलाश क्षेत्र में पीएम ने किया नए पर्यटन का आगाज, सुनियोजित विकास सरकार और पर्यटन विभाग की चुनौती

देहरादून। उत्तराखंड में पर्यटन की बात करें तो मन धर्म, आस्था, प्राकृतिक सौंदर्य, रहस्य व रोमांच के सुखद अनुभव से भर उठता है। किंतु दूसरी ओर यदि यात्राकाल में यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों की तस्वीर पर गौर करें तो मीलों लम्बे ट्रैफिक जैम, पार्किंग की अनुपलब्धता, आवासीय व्यवस्थाओं की कमी, दम तोड़ती सार्वजनिक सेवाएं, कूड़े के अंबार, लोकल व पर्यटकों के बीच विवाद आये दिन की बात है। ये सब पर्यटन विकास नीतियों के लचर क्रियान्वयन का नतीजा है। एक ओर जहाँ यूरोप के छोटे-छोटे देश पर्यटन को आर्थिक विकास व सामाजिक, सांस्कृतिक व पर्यावरण संरक्षण के मुख्य हथियार की तरह प्रयोग कर रहे हैं। वहीं भारत समेत अधिकांश विकासशील देशों में पर्यटन की तस्वीर एकदम उलट है।
पर्यटन यदि सुनियोजित तरीके से विकसित किया जाय तो यह स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार सृजन के साथ ही क्षेत्र के सर्वांगीण विकास का साधन बन सकता है जबकि अनियोजित पर्यटन विकास पर्यटक स्थल के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों के क्षरण के साथ ही कई तरह की सामाजिक बुराईयों को जन्म देता है।अनियोजित पर्यटन अर्थव्यवस्था व पर्यावरण पर भी गम्भीर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
यह पोस्ट 12 अक्टूबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कुमाऊँ क्षेत्र की यात्रा पर है जो कि कई मायनों में खास रही। यह यात्रा आदिकैलाश क्षेत्र में पर्यटन के नए आयाम स्थापित करने में सहायक सिद्ध होगी। पूर्व में श्री केदारनाथ पर्यटन परिक्षेत्र के पुनर्निर्माण व पर्यटन उद्योग के पुनर्स्थापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा की भूमिका का सकारात्मक असर देखा जा चुका है। निश्चित तौर पर अब पार्वती कुण्ड क्षेत्र भारतीय पर्यटन पटल पर स्थापित हो चुका है और आगामी समय में में वहाँ बड़ी संख्या में पर्यटकों के पहुँचने की उम्मीद है जो कि स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए एक शुभ संकेत हैं।
पार्वती कुंड परिक्षेत्र पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र है। बढ़ती पर्यटन मांग सुनियोजित विकास के अभाव में इस क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन हेतु हानिकारक भी हो सकती है। ऐसे में पारिस्थितिकीय संतुलन के साथ पर्यटन विकास सरकार व उत्तराखंड पर्यटन विभाग के लिए बड़ी चुनौती होने जा रही है। क्योंकि प्रदेश के अधिकांश प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों जैसे मसूरी, ऋषिकेश, नैनीताल व यहॉं तक कि केदारनाथ में भी यात्राकाल में अव्यवस्थाएं एवं पर्यटन के अन्य नकारात्मक प्रभाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।
अभी समय है कि पर्यटन विभाग भविष्य में पर्यटन की मांग का अध्ययन कर पर्यटन विकास हेतु अन्य सहयोगी विभागों जैसे कि बागवानी, कृषि, सड़क व राजमार्ग, वित्तीय संस्थानों आदि को साथ लेकर इस क्षेत्र के विकास हेतु एक एकीकृत प्लान विकसित कर उसके प्रभावी क्रियान्वयन हेतु प्रतिबद्ध हो जिससे कि क्षेत्र के सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक विकास के साथ ही पर्यावरण संरक्षण में पर्यटन की भूमिका सुनिश्चित की जा सके। इस हेतु कुछ सुझाव पर गौर करके पर्यटन विकास में आगे बढ़ा जा सकता है। क्षेत्र की वहन क्षमता का अध्ययन कर वहाँ प्रतिदिन आने वाले पर्यटकों की संख्या का निर्धारण किया जाए, क्षेत्र की भौतिक वहन क्षमता के आधार पर पर्यावरण व सामाजिक ढांचे के अनुकूल पर्यटक सुविधाओं का निर्माणा, ग्राम व क्षेत्र स्तर पर पर्यटन विकास समितियों का निर्माण कर पर्यटन नीति निर्माण एवं पर्यटन विकास योजनाओं के संचालन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाय।
बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की बजाय सूक्ष्म स्तर के निर्माण किये जायें, लक्सरी होटल्स की जगह छोटे लॉज व होमस्टे को वरीयता दी जाए, पर्यटन उद्यमों में स्थानीय लोगों को वरीयता दी जाय। पर्यटन उत्पादों एवम सेवाओं के सफल सम्पादन हेतु सभी हिस्सेदारों को कौशल प्रशिक्षण दिया जाए। क्षेत्र में आने वाले पर्यटकों को स्थानीय लोक भावनाओं एवम परम्पराओं के बारे में जागरूक करने हेतु इंफोर्मेटिव साइन बोर्ड लगाएं जाएं व पर्यटकों हेतु आचार संहिता बनाई जाए।
नीति निर्माण हेतु पर्यटन व अन्य सम्बन्धित विभागों के अधिकारी व कर्मचारी गावों में जाकर वहां की वस्तुस्तिथि के अनुरुप नीतिनिर्माण करें। उपरोक्त सुझाव पार्वतीकुण्ड पर्यटन परिक्षेत्र में पर्यटन के सतत विकास की रूपरेखा हेतु महत्वपूर्ण होने के साथ ही भविष्य में क्षेत्र के पर्यावरण, परिस्थितिकी, सामाजिक एवम सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण हेतु भी सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
लेखक- डॉ0 विजय प्रकाश भट्ट,
उच्च शिक्षा विभाग, उत्तराखंड में पर्यटन अध्ययन के प्राध्यापक हैं।