भ्रष्टाचार: कैंट बोर्ड में तीन साल से दाखिला खारिज को चक्कर काट रहा था बुजुर्ग

देहरादून। गढ़ी कैंट बोर्ड में सीबीआई की कार्रवाई ने बड़े भ्रष्टाचार को न केवल उजागर किया, बल्कि यहां तैनात रहे पूर्व और वर्तमान अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए। बुजुर्ग ने जो तहरीर सीबीआई को दी है, उसमें मकान 1998 में खरीदा गया। इसके लिए बुजुर्ग 24 साल से दाखिला खारिज होने की आस में बैठा रहा। लेकिन जब कैंट बोर्ड ने नियमानुसार कार्यवाही नहीं की तो 2019 से बुजुर्ग लिखित पत्र देकर लगातार कैंट के चक्कर लगा रहा था। बावजूद इसके बुजुर्ग की रजिस्ट्री के बाद जो दाखिला रूटीन में होना था, उसके लिए रिश्वतखोरी की गई। अब मामला अकेले शिकायत करने वाले वेद प्रकाश गुप्ता का नहीं, बल्कि कैंट बोर्ड में जानबूझकर या किसी अड़चन से लटके मामलों पर भी जांच होनी चाहिए। इसके अलावा 1998 के बाद अब तक हुए वेद प्रकाश गुप्ता जैसे दाखिलों की भी जांच जरूरी हो गई है। ताकि कैंट बोर्ड की ईमानदारी और भ्रष्टाचारी की हकीकत सामने आ सके।
(सीबीआई द्वारा गिरफ्तार रमन अग्रवाल)
राजधानी स्थित गढ़ी कैंट बोर्ड लम्बे अरसे से भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ था। यही कारण रहा कि हमेशा यहां सीबीआई की कार्रवाई होती रही। यह दीगर बात है कि सीबीआई ने 2014 में एक बाबू को गिरफ्तार किया था। इसके बाद सीबीआई ने कई छापेमारी की, लेकिन भ्रष्टाचारी बच निकले। 2019 से तो कैंट बोर्ड भ्र्ष्टाचार को लेकर चर्चाओं में रहा। यहां अवैध प्लाटिंग, नक्शे पास कराने से लेकर दूसरे कामों में जमकर धांधली के आरोप लगे। इसके पीछे तत्कालीन सीईओ पर भी आरोप लगते गए। सूत्रों का कहना है कि पहले भी दाखिला खारिज में गड़बड़ी की शिकायत रही। इस पर गत दिवस सीबीआई द्वारा गिरफ्तार रमन अग्रवाल को पूर्व में दाखिला सेल से हटा दिया था। लेकिन 2019 में तत्कालीन सीईओ तनु जैन के आने के बाद फिर अग्रवाल पुराने अंदाज में लौट आया। हद तो यह है कि दाखिला खारिज में खेल के लिए पूरी व्यवस्था ही बदल दी थी। पहले कैंट बोर्ड में नक्शे पास, दाखिला एक कमेटी की संस्तुति के बाद बोर्ड बैठक में पास होते थे। जिससे प्रक्रिया पारदर्शी थी। लेकिन पूर्व सीईओ ने प्रक्रिया को ऑनलाइन कर भ्र्ष्टाचार का जो रास्ता खोला, उससे बेवजह दाखिलों और नक्शों पर अड़चन लगाई जाने लगी और इसके बाद सम्बंधित सेल से जुड़े कर्मचारी सीधे भ्रष्टाचार का खेल खेलने लगे। आज स्थिति यह है कि ऑनलाईन प्रक्रिया जितनी सरल होनी थी, बोर्ड ने इसको और कठिन बना दिया। यही कारण है कि वेद प्रकाश गुप्ता जैसे कई पीड़ित कैंट बोर्ड के भ्र्ष्टाचार से आए दिन परेशान होते रहते हैं। इसके पीछे बड़ा सवाल यह है कि क्या पूर्व सीईओ के बाद वर्तमान सीईओ ने वेद प्रकाश गुप्ता जैसे लोगों के लटकाए गए दाखिला खारिज और अन्य का संज्ञान नहीं लिया होगा। जबकि दाखिला खारिज से लेकर नक्शा पास करने पर सीईओ का अंतिम निर्णय होता है। ऐसे में अब यदि पूर्व में हुए दाखिलों और वर्तमान में लटकाए गए दाखिला आदि प्रक्रिया की गहन जांच हुई तो कैन्ट बोर्ड और उसके जिम्मेदार अफसरों की हकीकत सामने आ जायेगी। बहरहाल कैन्ट बोर्ड में सीबीआई की कार्रवाई भ्रष्टाचार पर जितनी बड़ी कार्रवाई है, उससे ज्यादा जिम्मेदार और भ्रष्टाचार फैलाने वालों को भी सलाखों के पीछे पहुंचाने की आवाज उठने लगी हैं। यदि सीबीआई ने तह तक जांच की तो कैंट बोर्ड के भ्रष्टाचार का कच्चा चिठ्ठा सामने आ जाएगा। इधर, कैन्ट के वर्तमान सीईओ अभिनव सिंह ने कहा कि वेद प्रकाश वाला मामला उनके संज्ञान में नहीं लाया गया। उन्होंने आम लोगों से अपील की कि यदि बोर्ड स्तर पर कोई अधिकारी और कर्मचारी बेवजह परेशान करता या मामला जानबूझकर लटकाता तो उसकी सीधी शिकायत उन से कर सकते हैं।
(सीबीआई द्वारा गिरफ्तार शैलेन्द्र शर्मा)
लीगल से नहीं ली जाती राय
कहने के लिए तो हर कैंट बोर्ड में लीगल अफसर होते हैं। जमीनों के विवाद समेत कानूनी अड़चनों को दूर करने में लीगल अफसर अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन कैन्ट बोर्ड में अक्सर लीगल राय नहीं ली जाती है। वेद प्रकाश गुप्ता हो चाहे पुराने विवादित मामलों में लीगल राय की अनदेखी की गई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि लीगल अफसरों के बाबजूद राय न लेना कई सवालों को जन्म देते हैं।
प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार पर कही ये बातें
हाल ही में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के दिन भ्रष्टाचार को जड़मुक्त करने का संकल्प दोहराया था। चूंकि सीबीआई देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी हैं, ऐसे में उम्मीद है कि उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के अड्डे बने कैंट बोर्ड में सीबीआई निष्पक्ष जांच कर भ्रष्टाचारियों को सलाखों तक पहुंचाएगी। इसके बाद ही देश मे पनप रहे भ्रष्टाचार का अंत होने की उम्मीदें की जा सकती है।
केंद्र के विभागों में भी भ्रष्टाचार
उत्तराखंड में नौकरियों में जमकर हुए भ्रष्टाचार का जिन्न अभी अभी बाहर आया है। यूकेएसएसएससी, विधानसभा में नौकरियों की भर्ती पर अभी बवाल थमा भी नहीं कि कैन्ट बोर्ड में भ्र्ष्टाचार पर सीबीआई की कार्रवाई ने केंद्रीय विभागों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।