उत्तरकाशी के शक्ति मंदिर को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर धामी कह गए बड़ी बात, कहा इसलिए जरूर करें मंदिर में दर्शन
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शक्ति मंदिर उत्तरकाशी की महत्ता को लेकर बड़ा ट्वीट किया है। कहा कि नवरात्रों में मां शक्ति की उपसान के साथ विश्वनाथ मंदिर परिसर में स्थित शक्ति मंदिर के दर्शन जरूर करें। मुख्यमंत्री ने चारधाम यात्रा, उत्तरकाशी भ्रमण पर आने वाले तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों को जरूर मंदिर में दर्शन करने की अपील की। मुख्यमंत्री ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा कि …….”माँ भगवती दुर्गा को समर्पित शक्ति मंदिर जनपद उत्तरकाशी मुख्यालय के “शिव शक्ति मंदिर परिसर” में स्थित है। नवरात्रि के पावन अवसर पर इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस मंदिर में दर्शनीय त्रिशूल विराजमान है, जिसके दर्शन एवं पूजा अर्चना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जिसे शक्ति के स्वरूप में पूजा जाता है। अपने उत्तरकाशी भ्रमण पर यहाँ अवश्य पधारें।”
शक्ति मंदिर उत्तरकाशी
भागीरथी नगरी के किनारे उत्तरकाशी शहर में प्राचीन शक्ति मंदिर है। इस मंदिर के कपाट वर्ष भर खुले रहते हैं। लेकिन नवरात्र और दशहरे पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। यात्रा काल में गंगोत्री यमुनोत्री के दर्शन करने वाले यात्री यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस मंदिर में सबसे रोचक शक्ति स्तंभ है। यह शक्ति स्तंभ उंगील से छूने से हिल जाता है। लेकिन जोर लगाने पर नहीं हिलता है। गंगोत्री व यमुनोत्री आने वाले यात्रियों के लिए यह शक्ति स्तंभ आकर्षण व श्रद्धा का केंद्र होता है।
शक्ति मंदिर का इतिहास
स्कंद पुराण के केदारखंड में इस शक्ति मंदिर का वर्णन मिलता है। यह सिद्धपीठ पुरोणों में राजराजेश्वरी माता शक्ति के नाम से जानी गई है। अनादि काल में देवासुर संग्राम हुआ। जिसमें देवता व असुरों से हारने लगे तब सभी देवताओं ने मां दुर्गा की उपासना की। इसके फलस्वरूप दुर्गा ने शक्ति का रूप धारण किया तथा असुरों का वध किया। इसके पश्चात यह दिव्य शक्ति के रूप में विश्वनाथ मंदिर के निकट विराजमान हो गई। एवं अनंत पाताल लोक में भगवान शेष नगा के मस्तिक में शक्ति स्तंभ के रूप में विराजमान हो गई। आज तक इस शक्ति स्तंभ का ये पता नहीं चल पाया है कि यह किस धातु से बना हुआ है। इस शक्ति स्तंभ के गर्भ गृह में गोला कार कलश है। जो अष्टधातु का है। इस स्तंभ पर अंकित लिपि के अनुसार यह कलश 13वीं शताब्दी में राजा गणेश ने गंगोत्री के पास सुमेरू पर्वत पर तपस्या करने से पूर्व स्थापित किया। यह शक्ति स्तंभ 6 मीटर ऊंचा तथा 90 सेंटीमीटर परिधि वाला है।
कैसे पहुंचे मंदिर तक
ऋषिकेश से सड़क मार्ग होते हुए करीब 180 किलोमीटर और देहरादून से 140 किमी सड़क मार्ग से तथा सहस्रधारा से चिन्यालीसौड़ तक हेलीकॉप्टर के बाद 30 किमी सड़क मार्ग से उत्तरकाशी पहुंचा जा सकता है। उत्तरकाशी बस स्टैंड से तीन सौ मीटर दूर शक्ति मंदिर स्थिति है। शक्ति मंदिर के सामने ही विश्वनाथ मंदिर भी है। शक्ति मंदिर के पुरोहित एवं संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य मुरारी लाल भट्ट बताते कि शक्ति मंदिर में लोगों की बड़ी आस्था है। नवरात्र व दशहरे में यहां विशेष पूजा अर्चना होती है। प्रमुख पर्व के दौरान मां शक्ति के दर्शन मात्र से मानव का कल्याण होता है। वर्ष भर श्रद्धालु अपनी मन्नतों को लेकर मां के दरबार में आते हैं।