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उम्रकैद की सजा से जेल में तड़प तड़प कर सांस लेंगे अंकिता के तीनों हत्यारे

देहरादून। अंकिता भंडारी हत्याकांड रैग्यूलर पुलिस के हवाले होने के 24 घंटे के अंदर पुलिस ने 22 सितंबर को ही इस मामले में तीनों आरोपित पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को गिरफ्तार किया। तब से तीनों एक भी दिन खुली हवा में सांस नहीं ले पाए। उनकी जमानत लेने की हर कोशिश को सरकारी वकीलों ने नाकाम कर दिया।

अंकिता भंडारी हत्याकांड में उत्तराखंड सरकार ने जिस संवेदनशीलता और दृढ़ता के साथ कदम उठाए हैं, वह एक उदाहरण बनकर सामने आया है। 22 सितंबर 2022 को गिरफ्तार किए जाने के बाद तीनों आरोपी एक भी दिन जमानत पर बाहर नहीं निकल पाए। न्यायिक इतिहास में ऐसे बहुत कम मामले होते हैं, जिसमें आरोपित को एक भी बार जमानत न मिले। आमतौर पर हमारी न्याय प्रणाली, ट्रायल के दौरान एक निश्चित अवधि के बाद, आरोपितों को जमानत देने के पक्ष में रही है। लेकिन इस मामले में ऐसा संभव नहीं हो पाया, अभियोजन ने मजबूत पैरवी से हर बार तीनों की जमानत की कोशिश को नाकाम कर दिया। अगर कोर्ट ने अंतिम फैसला सुनाए जाने से पहले तक तीनों को एक भी बार जमानत नहीं दी तो इससे साफ है कि अभियोजन ने पुलिस जांच के दौरान सामने आए अकाट्य सुबूत कोर्ट के सामने रखे। पुलिस ने चार्जशीट के साथ 100 से अधिक गवाहों के बयान और 500 पन्नों की विस्तारपूर्ण जानकारी कोर्ट के सामने पेश की। इस तरह यह मामला उत्तराखंड की न्यायिक प्रणाली और सरकार की इच्छाशक्ति का मजबूत उदाहरण बन गया है।

 

अंकिता को न्याय मिला, दुष्प्रचार के मुंह पर जड़ा ताला

अंकिता भंडारी के गुनाहगारों को आजीवन कठोर कारावास और जुर्माना की सजा मिलने के साथ ही, इस संवेदनशील प्रकरण में दुष्प्रचार करने वालों को भी करार जवाब मिल गया है। इस प्रकरण में कथित वीआईपी को लेकर हाय तौबा करने वाले किसी भी पक्ष ने कभी भी कोर्ट में संबंधित तथ्य नहीं रखे। इससे यह स्पष्ट होता है कि इन मुद्दों को केवल राजनीतिक लाभ के लिए उछाला गया।
सरकार ने इस मामले में पहले ही दिन से ना सिर्फ निष्पक्ष जांच पर जोर दिया बल्कि ट्रायल के दौरान परिजनों की इच्छा के अनुसार तीन बार सरकारी वकील को बदलने का काम किया। इस घटना के बाद से ही तमाम लोग महज राजनैतिक लाभ के लिए कभी पुलिस जांच पर सवाल उठाते रहे तो कभी कथित वीआईपी को लेकर संदेह का जाल बुनते रहे। हालांकि आरोप लगाने वाले कोर्ट में कथित वीआईपी को लेकर कोई तथ्य नहीं रख पाए। दूसरी तरफ इससे प्रभावित हुए बिना एसआईटी प्रत्यक्ष गवाहों, सुबूतों और डिजिटल रिकॉर्ड के आधार पर केस को मजबूत बनाती रही, जिस के आधार पर आखिरकार तीनों आरोपितों को आजीवन कठोर कारावास की सजा मिल पाई। अब कोर्ट के फैसले ने इस मामले में किए जा रहे राजनैतिक दुष्प्रचार का भी जवाब दे दिया है। साथ ही सरकार की निष्पक्ष जांच पर मुहर लगाने का काम किया है। इससे पहले ट्रायल के दौरान सुप्रीम कोर्ट तक एसआईटी जांच को सही करार देते हुए, निष्पक्ष जांच जारी रखने पर मुहर लगा चुका है।

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