देहरादून।उत्तराखंड के चर्चित रणवीर हत्याकांड में 11 साल से जेल में बंद दो और दरोगाओं को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है। यह दोनों दरोगा दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के आदेश पर 11 साल से उम्र कैद की सजा काट रहे हैं। इससे पहले 11 लोगों हाईकोर्ट ने मामले में बरी कर दिया था।अब दो लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल की सजा पूरी होने पर दोषियों की अपील स्वीकार करने के चलते जमानत का आदेश दिया है। उल्लेखनीय है कि मुठभेड़ करने वाली इस टीम में उपरोक्त दोनों उपनिरीक्षक शामिल थे। उस समय राजेश बिष्ट नेहरू कॉलोनी थाने के एसएचओ थे। इस मामले की सीबीआई ने जांच की थी।
गौरतलब है कि 2009 में पुलिस मुठभेड़ में छात्र रणबीर की देहरादून में हत्या करने के दोषी 18 पुलिस कार्मिकों को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इनमें ये दो पुलिस उपनिरीक्षकों भी शामिल थे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देने का आदेश दिया है। ये दोनों दोषी 11 साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं। इन दोनों दोषियों की अपील दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी। दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है। गत दिवस न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी अपील का फैसला होने तक दोनों को जमानत दी जाती है। उपनिरीक्षक राजेश बिष्ट और सीएम रावत ने वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. हर्षवीर प्रताप शर्मा के जरिए सुप्रीम कोर्ट में 2019 में अपील दायर की थी। डॉ. शर्मा ने जमानत की अर्जी पर बहस करते हुए कहा कि दोनों दोषी पिछले 11 साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया कि 10 साल से ज्यादा समय जेल में बिता चुके दोषियों को अपील के लंबित होने तक जमानत दी जानी चाहिए। पीठ ने दलील स्वीकार कर ली और दोषियों को जमानत पर छोड़ने का आदेश जारी कर दिया। इस प्रकरण में 11 अन्य दोषी को पूर्व में हाई कोर्ट ने बरी कर दिया था। अभी मृतक और उसके साथियों पर सीबीआई ने जो चार्जशीट की, उस मामले में अभी कार्रवाई पेंडिंग हैं।
क्या था पूरा मामला
वर्ष 2009 में 3 जुलाई को उत्तराखंड पुलिस ने एमबीए के छात्र रणबीर निवासी खेकड़ा, बागपत की रायपुर क्षेत्र में कथित मुठभेड़ में हत्या कर दी थी। पोस्टमार्टम में रणबीर के शरीर पर 22 गोलियां पाई गईं जी जांच में महज तीन फुट की दूरी से चलाई गई की पुष्टि हुई थी। परिजनों का आरोप था कि पुलिस ने पहले रणबीर को प्रताड़ना दी, उसके बाद जंगल में ले जाकर हत्या कर दी और उसे फर्जी मुठभेड़ का रूप दे दिया। कई दिनों तक मामले में उत्तराखंड से लेकर उत्तरप्रदेश तक आंदोलन होने पर कई सीबीआई ने मामले की जांच की थी। जिसके बाद दोषियों को सजा हुई थी।