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वीडियो…सीएम सिक्योरिटी में जबरन घुस रहे जिला पंचायत अध्यक्ष की प्रोटोकॉल को लेकर नोंकझोंक, पुलिस ने समझाया तब मामला सुलझा

देहरादून। पीपलकोटी में आयोजित बंड विकास मेले के समापन समारोह में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आगमन के दौरान प्रोटोकॉल को लेकर विवाद का मामला सामने आया। कार्यक्रम स्थल पर जिला पंचायत अध्यक्ष दौलत बिष्ट और पुलिस अधिकारियों के बीच कुछ समय के लिए तीखी बहस की स्थिति बन गई, हालांकि बाद में पुलिस प्रशासन द्वारा हस्तक्षेप कर मुख्यमंत्री की जेड प्लस सुरक्षा का हवाला देते हुए मामला शांत करा दिया गया।

मुख्यमंत्री के कार्यक्रम को लेकर जिला प्रशासन और पुलिस द्वारा कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। इसी दौरान कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे जिला पंचायत अध्यक्ष को मंच और उसके आसपास जाने से सुरक्षा कर्मियों ने रोक दिया। इस पर जिला पंचायत अध्यक्ष ने अपनी नाराजगी व्यक्त की।

पुलिस प्रशासन के अनुसार सुरक्षा ड्यूटी में तैनात पुलिसकर्मी जिला पंचायत अध्यक्ष को पहचान नहीं पाए, जिसके कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई। पुलिस अधीक्षक सुरजीत सिंह पंवार ने मौके पर पहुंचकर दोनों पक्षों के बीच उत्पन्न गलतफहमी को दूर किया, जिसके बाद कार्यक्रम सामान्य रूप से संपन्न हुआ। इधर, प्रोटोकॉल के जानकारों का कहना है कि जिले में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में जिला पंचायत अध्यक्ष का नंबर सांसद, क्षेत्रीय विधायक के बाद आता है। जबकि नगर निकाय क्षेत्र में निकाय अध्यक्ष के बाद आता है। यहां भी संबंधित जनप्रतिनिधि को समय से निर्धारित स्थान पर मंचासीन होना जरूरी है। ऐसे में पद की गरिमा के खिलाफ मामले को तूल देना गलत है।

हर मुख्यमंत्री का यह है प्रोटोकॉल

पुलिस अधीक्षक ने स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री जेड-प्लस सुरक्षा श्रेणी में आते हैं और उनके प्रत्येक सार्वजनिक कार्यक्रम के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) से पूर्व निर्धारित डायस और सुरक्षा योजना जारी की जाती है। इसी योजना के तहत मंच क्षेत्र में प्रवेश नियंत्रित किया जाता है।
उन्होंने बताया कि जो जनप्रतिनिधि मुख्यमंत्री के मंच पर पहुंचने से पहले निर्धारित सीटों पर बैठते हैं, उन्हें किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती। लेकिन मुख्यमंत्री के मंच पर पहुंचने के बाद यदि कोई व्यक्ति मंच के समीप जाने का प्रयास करता है, तो सुरक्षा कारणों से उसकी पहचान और सत्यापन करना सुरक्षा एजेंसियों की अनिवार्य जिम्मेदारी होती है।

यह है पुलिस की व्यवहारिक दिक्क़तें

पुलिस प्रशासन ने यह भी कहा कि प्रत्येक पुलिसकर्मी या सुरक्षा अधिकारी का सभी जनप्रतिनिधियों को व्यक्तिगत रूप से पहचानना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। ऐसे में सुरक्षा व्यवस्था में बाधा डालने के बजाय सहयोग किया जाना चाहिए। प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति की सुरक्षा सर्वोपरि होती है और इससे जुड़ा मामला किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत नाराजगी या पद के अहंकार से ऊपर होता है।
घटना के बाद प्रशासनिक हलकों में इस विषय पर चर्चा तेज है कि सार्वजनिक मंचों पर सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन सभी के लिए अनिवार्य है।

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