
दवा। राजधानी स्थित सबसे पुराने दून क्लब लिमिटेड से जुड़े हुए कायदे कानून को लेकर चर्चाओं में है। भारतीय परंपरा से जुड़े परिधान पहनने वालों को यहां प्रवेश नहीं मिलता है। लेकर राज्य की सबसे बड़ी बार एसोसिएशन के 9 बार अध्यक्ष रहे मनमोहन कांडवाल जब भारतीय परंपरा के अनुसार धोती-कुर्ता क्लब क्षेत्र में गए तो इसमें प्रवेश नहीं दिया गया। क्लब के सदस्यों ने एसोसिएशन की शर्तो को खारिज कर दिया, जिससे वे नाराज हो गए और कहा कि सोमनाथ के मंदिर से चल रहे नियम भारतीय परंपरा के खिलाफ हैं। ऐसे नियम अब ठीक नहीं है।
दरअसल, द दून क्लब लिमिटेड का संचालन काफी हद तक ब्रिटिशकाल के कायदे कानूनों के साथ होता है। यहां की सदस्यता लेना भी आसान नहीं है। ऐसे में जब राजधानी के बार एसोसिएशन में 9 बार अध्यक्ष रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मनमोहन कंडवाल भारतीय परिधान धोती–कुर्ता और चप्पलों में सदस्यता फॉर्म लेने जा पहुंचे तो क्लब के पदाधिकारी हैरान रह गए। इस दौरान द दून क्लब के सभी पदाधिकारियों ने उनको क्लब की सदस्यता के अलावा ड्रेस कोड की जानकारी दी तो वह नाराज हो गए और कहा कि यह भारतीय परंपरा के खिलाफ है। इस दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मनमोहन कंडवाल ने कहा कि 1901 से बने इस अंग्रेज़ी कानून को दून क्लब ने अभी तक लागू किया हुआ है। जबकि धोती–कुर्ता ये भारतीय परंपराओं और सनातन धर्म की वेश–भूषाओं का हिस्सा हैं। दून क्लब के कायदे कानूनों पर सवाल उठता देख दून क्लब लिमिटेड के अध्यक्ष सुनीत मेहरा ने अपनी सफाई में कहा है कि दून क्लब के नियमों में वक्त–वक्त पर बदलाव होते रहते हैं ऐसे में दून क्लब के ड्रेस कोड को लेकर पहली बार किसी ने अपनी आपत्ति जताई है इसको लेकर दून क्लब हाउस की बैठक में ये मुद्दा प्रमुखता से उठाया जाएगा और इस पर विचार किया जाएगा।