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उत्तराखंड में कौन बनेगा नया डीजीपी, हर तरफ इन नामों पर चली रही चर्चाएं

देहरादून। उत्तराखंड में नए पुलिस मुखिया यानी डीजीपी बनने के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई है। आज से ठीक 38 दिन बाद राज्य को नया डीजीपी मिल जाएगा। इसके लिए उत्तराखंड कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अफसरों के अलावा पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश और दूसरे कैडर से कई नामों पर चर्चाएं शुरू हो गई है। हालांकि वर्तमान में उत्तराखंड कैडर के वरिष्ठ आईपीएस डीजीपी बनने के लिए यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) के तय मानक और सेवा शर्तें पूरी नहीं करते हैं। ऐसे में प्रबल संभावना हैं कि उत्तराखंड में अगला डीजीपी प्रभारी डीजीपी बनाने या फिर दूसरे राज्य से लाने पर निर्णय हो सकता है। इसमें भी प्रभारी डीजीपी बनाये जाने की ज्यादा संभावना है।

(डीजीपी अशोक कुमार-फ़ाइल फ़ोटो)

दरअसल, वर्तमान डीजीपी अशोक कुमार 30 नवम्बर 2023 को रिटायर्ड हो रहे हैं। वह 1989 बैच के आईपीएस अफसर हैं। उनके बाद उत्तराखंड में 1995 बैच दो अफसर हैं। इनमें पीवीके प्रसाद अभी तक पुलिसिंग के मुख्य कार्य एडीजी लॉ एंड ऑर्डर, इंटीलेजेन्स, एडमिन, विजिलेंस जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से दूर रहे या उनको दूर रखा गया। कुछ मामलों में वह विवादित भी रहे। ऐसे में उनका डीजीपी बनाना आसान नहीं है। दूसरा नाम आईपीएस दीपम सेठ का है। दीपम सेठ उत्तराखंड के सुलझे, गंभीर और अच्छे अफसरों में शामिल हैं। लेकिन वर्तमान में वह आईटीबीपी में जुलाई 2019 से प्रतिनियुक्त पर हैं। उनकी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति जुलाई 2024 तक है। डीजीपी बनने के लिए उनको अपनी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पुरी करनी जरूरी है। ऐसे में विशेष कारणों से ही वह छह माह पहले डीजीपी बन सकते हैं। यहां चर्चाएं यह भी है कि यदि दूसरे कैैैैडर के आईपीएस उत्तराखंड में डीजीपी बनने को आगे नहीं आये तो प्रबल संभावना है कि सरकार दीपम सेेेठ के केंद्रीय कार्यकाल पूरा होने तक किसी दूसरे जूनियर आईपीएस को छह माह के लिए प्रभारी डीजीपी बना सकती है।

(आईपीएस अभिनव कुमार फ़ाइल फ़ोटो)

...तो आईपीएस अभिनव बन सकते डीजीपी!

डीजीपी अशोक कुमार के बाद 1996 बैच के आईपीएस अभिनव कुमार के डीजीपी बनने की भी प्रबल संभावना जतायी जा रही है। सरकार में अहम भूमिका निभा रहे अभिनव कुमार को पूर्णकालिक डीजीपी आने तक प्रभारी डीजीपी बनाया जा सकता है। उनके पास केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का पर्याप्त अनुभव है। हालांकि दूसरे कैडर के होने के कारण और उनसे पहले आईपीएस पीवीके प्रसाद का अधिकार से उनके डीजीपी बनने में कुछ अड़चन आ सकती है।

30 से 25 साल की सिफारिश का मिलेगा फायदा

यूपीएससी ने हाल ही में पूर्वोत्तर राज्यों में सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड आदि में डीजीपी बनने की 30 साल की योग्यता को 25 कर दी है। ऐसे में अब 25 साल अनुभव वाले आईपीएस अफसरों को इसका लाभ मिलेगा। इनमें एडीजी रैंक के जूनियर अफसरों को भी फायदा मिलेगा। यानी 1997 बैच के अफसर भी इसके दायरे में आ गए हैं।

डीजीपी अशोक कुमार के सेवा विस्तार पर संशय

उत्तराखंड के वर्तमान डीजीपी अशोक कुमार को भी सेवा विस्तार मिल सकता है। इसकी भी खूब चर्चाएं चल रही हैं। खासकर सीएस एसएस संधू को भी राज्य में सेवानिवृत्त से पहले सेवा विस्तार मिला है। लेकिन डीजीपी के मामले में कुछ अड़चन आ सकती हैं। लोक सभा चुनाव 2024 की आचार संहिता के चलते कोई भी अफसर एक ही स्थान पर तीन साल नहीं रह सकता है। ऐसे में डीजीपी अशोक कुमार का कार्यकाल पूरा तीन साल 30 नवम्बर को हो जाएगा। अब यदि उनको 6 माह सेवा विस्तार मिलता तो उस दौरान लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के चलते जरूर अड़चन आएंगे। ऐसे में जानकारों का मानना है कि उनके सेवा विस्तार पर संशय बना हुआ है।

(आईपीएस दीपम सेठ)

उत्तराखंड में 7 एडीजी, सबसे टॉप पर ये

उत्तराखंड में वर्तमान में 7 अपर पुलिस महानिदेशक हैं। इनमें दो एडीजी दीपम सेठ और संजय गुंज्याल डेपुटेशन पर गए हैं। जबकि पीवीके प्रसाद, अभिनव कुमार, अमित कुमार सिन्हा, वी मुरूगेशन, एपी अंशुमान उत्तराखंड में विभिन्न पदों पर जिम्मेदारी संभाले हैं। इनमें डीजीपी के लिए यदि कोई नाम यूपीएससी को भेजा जाएगा तो उनमें डेपुटेशन वालों को एनओसी देनी होगी। जबकि अन्य वह नाम भेजे जाएंगे,जो सेंट्रल में डेपुटेशन पर पांच साल का समय पूरा कर चुके हैं। राज्य में टॉप के हिसाब से 1995 बैच के दीपम सेठ, पीवीके प्रसाद, 1996 के अभिनव कुमार, 1997 के अमित सिन्हा, वी मुरूगेशन, संजय गुंज्याल, 1998 बैच के एपी अंशुमन शामिल हैं।

यूपीएससी को भेजे जाएंगे नाम

उत्तराखंड का गृह विभाग मुख्यमंत्री की सहमति अथवा संज्ञान में लाने के बाद प्रस्ताव का पैनल संघ लोक सेवा आयोग को भेजेगा। नियमानुसार यह प्रस्ताव किसी भी राज्य के रिटायर्ड होने से ठीक तीन माह पहले भेजा जाता है। पैनल में भेजे गए अंतिम तीन नामों में यूपीएससी प्राथमिकता के आधार पर राज्य कैडर के वरिष्ठ अधिकारियों का पैनल बनाकर राज्य को भेजेगा। इसके बाद राज्य सरकार एक सुयोग्य नाम डीजीपी के लिए तय कर आदेश जारी करेगी। यूपीएससी की गाइडलाइंस के अनुसार दो साल की स्पष्ट सेवा, योग्यता वरिष्ठता को महत्व देना होगा।

 

कार्यवाहक डीजीपी नहीं बना सकते

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य पुलिस बलों में सुधार और पारदर्शिता के लिए 2006 के प्रकाश सिंह मामले में स्पष्ट किया कि राज्य में कार्यवाहक या अस्थायी डीजीपी नहीं हो सकता है। सरकार को स्थायी डीजीपी नियुक्त करना होगा। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि डीजीपी बनने से पहले डीजी रैंक का अधिकारी होना जरूरी है।हालांकि कई मामलों में राज्य कम ही सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का पालन करते हैं। अधिकांश राज्य राज्य कानून के अनुरूप ही फैसला लेते हैं।

 

डीजीपी बनने के लिए ये योग्यता जरूरी

किसी भी राज्य का पुलिस मुखिया यानी डीजीपी बनने के लिए डीओपीटी की सेवा शर्तों का पालन किया जाना जरूरी है। इसमें 25 से 30 साल की निर्विवाद सेवा पहली प्राथमिकता है। इसके अलावा शारीरिक फिटनेस, नेतृत्व के गुण, संचार पारस्परिक कौशल, गंभीर सोच और निर्णय लेना, समस्या समाधान, तकनीकी कौशल, सत्यनिष्ठा और ईमानदारी, समय और संकट प्रबंधन जैसी योग्यता जरूरी है।

नागलैंड और छत्तीसगढ़ में हुआ था विवाद

कुछ माह पहले नागलैंड और छत्तीसगढ़ में डीजीपी की नियुक्ति को लेकर विवाद हुए हैं। वहां यूपीएससी ने एक नाम भेजने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। जबकि एक डीजीपी को लगातार सेवा विस्तार दिए जाने पर भी सवाल खड़े हुए थे।

 

 

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