देहरादून। उत्तराखंड के जिस जीआरडी वर्ल्ड स्कूल में चार साल पहले नाबालिग छात्रा से गैंगरेप हुआ था, उसको सैनिक स्कूल की मान्यता मिल गई। केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय के इस निर्णय से सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच सवाल उठने लगे हैं। खासकर इस स्कूल की छात्रा से गैंगरेप के बाद मुख्य आरोपियों और सहयोगियों को कठोर कारावास की सजा भी हो चुकी है। ऐसे में स्कूल को पीपीपी मोड़ पर सैनिक स्कूल जैसी प्रतिष्ठित जिम्मेदारी सौंपने से रक्षा मंत्रालय के निर्णय पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। यदि मंत्रालय इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं करता तो सामाजिक संगठन खुलकर लामबंद हो जाएंगे। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस विवादित स्कूल को मान्यता देने से मंत्रालय की छवि भी धूमिल होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में 100 सैनिक स्कूल खोलने की घोषणा की थी। इस पर रक्षा मंत्रालय ने त्वरित कार्यवाही करते हुए नए स्कूल ‘‘साझेदारी मोड’’ में देश भर में स्थापित किए जाएंगे। गत दिवस, रक्षा मंत्रालय ने गैर सरकारी संगठनों, निजी विद्यालयों, राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में 21 नए सैनिक स्कूल की स्थापना को मंजूरी दी है। इस आदेश में उत्तराखंड के जीआरडी वर्ल्ड स्कूल भाऊवाला (देहरादून) को पीपीपी मोड़ में सैनिक स्कूल संचालन की मान्यता दी गई। इसकी जानकारी सार्वजनिक होते ही रक्षा मंत्रालय के इस निर्णय पर सवाल उठने लगे हैं। खासकर जिस जीआरडी वर्ल्ड स्कूल में 2018 में 10वीं की छात्रा से गैंगरेप हुआ था तथा पूरे मामले में स्टाफ के साथ प्रबंधन की भूमिका सार्वजनिक हुई थी। इसके बाद कोर्ट ने 6 आरोपियों को कठोर कारावास की सजा भी 2020 में सुनाई है। यही नहीं गैंगरेप के साथ ही पीड़ित छात्रा का गर्भपात तक स्टाफ और प्रबन्धन ने कराया था। इसके बाद स्कूल की मान्यता तक सीबीएसई ने रद्द कर दी थी। लेकिन 2 साल बाद गुपचुप तरीके से विवादित स्कूल को रक्षा जैसे प्रतिष्ठित मंत्रालय ने सैनिक स्कूल संचालन की जिम्मेदारी सौंपना किसी के गले नहीं उतर रहा है। अब सैनिक स्कूल की मान्यता पर रक्षा मंत्रालय की भूमिका भी सवालों में घिर गई है। अब इस मामले में सामाजिक संगठन भी रक्षा मंत्रालय के निर्णय को गलत बता रहे हैं। इस सम्बन्ध में विभिन्न समाजिक संगठन और समाजसेवी प्रधानमंत्री, केंद्रीय रक्षा मंत्री, राज्य रक्षा मंत्री समेत जिम्मेदारी अधिकारियों को पत्र भेज रहे हैं। जल्द मामले में मंत्रालय ने निर्णय पर पुनर्विचार न किया तो विभिन्न संगठन आंदोलन को बाध्य होंगे। इसके साथ ही कुछ लोग न्यायालय जाने की भी तैयारी कर रहे हैं।