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पोर्टर से प्रेरणास्रोत पर्यटन “व्यवसायी” बनकर हरकीदून घाटी में जगाई स्वरोजगार की “अलख”

महज 35 रूपये की मजदूरी से शुरू की थी ट्रेकिंग,आज सैंकड़ों युवाओं को दे रहे हैं रोजगार

देहरादून। कभी हरकीदून की पगडंडियों पर 30-35 रुपये की मजदूरी पर पर्यटकों का सामान ढोने वाला एक किशोर, आज उत्तराखंड का प्रेरणास्रोत पर्यटन उद्यमी बन चुका है। सौड़ गाँव (मोरी ब्लॉक) के भगत सिंह रावत ने कठिनाइयों और सीमित साधनों के बावजूद अपने हौसले से वह कर दिखाया, जिसने पूरे क्षेत्र की तस्वीर ही बदल दी।

आज उनकी ‘हिमालयन हाईकर्स’ कंपनी उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर तक ट्रेकिंग टूर का संचालन करती है और 100 से अधिक स्थानीय युवाओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार दे रही है। 1990 के दशक में जब सांकरी में एक भी होटल नहीं था, तब भगत सिंह रावत हरकीदून आने वाले पर्यटकों के साथ पोर्टर के रूप में काम करते थे। वह बताते हैं “स्कूल में पढ़ाई के साथ ही हरकीदून आने वाले पर्यटकों के साथ महज 35 रूपये की मजदूरी पर जाता था। उस समय यहां न होटल था, न सड़क। आगे की पढ़ाई के लिए उत्तरकाशी गए तो नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) से पर्वतारोहण का प्रशिक्षण प्राप्त किया। फीस का इंतज़ाम भी उन्होंने संघर्ष करके किया। प्रशिक्षण के बाद उन्होंने आपदा प्रबंधन विभाग में नौकरी की, लेकिन दिल पर्यटन में था। उन्होंने सहकारी बैंक से लोन लेकर पहला होटल बनाया और वहीं से सांकरी में पर्यटन की कहानी ने नया मोड़ लिया। धीरे-धीरे पर्यटक बढ़े, व्यवसाय चला, और भगत ने नौकरी छोड़ पूरी तरह पर्यटन में कदम रख दिया। आज उनके पास दो शानदार होटल, खुद की ट्रैवल गाड़ियाँ, ट्रैकिंग उपकरणों की दुकान, प्रशिक्षित स्टाफ हैं, जो हरकीदून, केदारकांठा, रूपकुंड जैसे स्थलों तक टूर आयोजित करते हैं।

सांकरी बना पर्यटन क्षेत्र का हब 

कभी बेरोजगारी का प्रतीक माने जाने वाला मोरी ब्लॉक का सांकरी इलाका आज उत्तराखंड के सबसे अधिक स्वरोजगार देने वाले क्षेत्रों में शामिल है। यहां 100 से अधिक स्थानीय और बाहरी पर्यटन कंपनियां सक्रिय हैं।
हरकीदून, केदारकांठा, बाली पास, बोरासू पास जैसे ट्रेक्स अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो चुके हैं। अब तो सांकरी और जो खोल गांव फिल्म शूटिंग डेस्टिनेशन बन चुके हैं, कई बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग यहां हो चुकी है।

चंद्र सिंह गढ़वाली योजना बनी मददगार

भगत सिंह रावत कहते हैं सरकार की चंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना से मुझे होटल, गाड़ी और उपकरणों के लिए वित्तीय मदद मिली, जिससे व्यवसाय को बढ़ावा मिला। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि आज भी सांकरी क्षेत्र सरकारी उपेक्षा का शिकार है। सड़कें टूटी हैं, बैंक शाखा नहीं है, बागवानी विभाग का कार्यालय तक नहीं। इसके अलावा स्थानीय युवाओं का कहना है कि उन्होंने अपने बूते दो दर्जन से अधिक नए पर्यटन स्थल खोजे, लेकिन पर्यटन विभाग ने इन्हें अपने मानचित्र में शामिल नहीं किया।उनका आरोप है कि योजनाएं देहरादून में बनती हैं, जबकि जमीनी स्तर पर काम करने वालों से कभी राय नहीं ली जाती।

यहां हो रहा रिवर्स पलायन

अब यहां के युवा खुद की ट्रेकिंग कंपनियां बना रहे हैं, गाइड और पोर्टर के रूप में काम कर रहे हैं, और पढ़े-लिखे युवा शहरों से लौटकर अपने गांव में ही रोज़गार बना रहे हैं। कुछ युवतियाँ भी पर्यटन प्रशिक्षण लेकर खुद का व्यवसाय शुरू कर चुकी हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र रावत की फेसबुक वॉल से)

 

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