देहरादून। उत्तराखंड के चारों धामों में प्रमुख उत्तराखंड के बदरीनाथ के पास स्थित ब्रह्मकपाल के बारे में मान्यता है कि यहां पर पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को नरकलोक से मुक्ति मिल जाती है। स्कंद पुराण में ब्रह्मकपाल को गया से आठ गुना अधिक फलदायी तीर्थ कहा गया है। यही कारण है कि यहां श्राद्ध पक्ष में बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपने दिवंगत परिजनों की आत्मशांति के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं।
सृष्टि की उत्पत्ति के समय जब तीन देवों में ब्रह्माजी, अपने द्वारा उत्तपत्तित कन्या के रूप पर मोहित हो गए थे, उस समय भोलेनाथ ने गुस्से में आकर ब्रह्मजी के तीन सिरों में से एक को त्रिशूल से काट दिया था। इस प्रकार शिव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था और वह कटा हुआ सिर शिवजी के हाथ पर चिपक गया था। ब्रह्मा की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए जब भोलेनाथ पूरी पृथ्वी लोक के भ्रमण पर गए परन्तु कहीं भी ब्रह्म हत्या से मुक्ति नहीं मिली। भ्रमण करते-करते शिवजी बदरीनाथ पहुंचे वहां पर एक शिला पर शिवजी के हाथ से ब्रह्माजी का सिर जमीन पर गिर गया और शिवजी को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के रूप में प्रसिद्ध हुआ। ब्रह्मकपाल शिला के नीचे ही ब्रह्मकुण्ड है जहां पर ब्रह्माजी ने तपस्या की थी। शिवजी ने ब्रह्महत्या से मुक्त होने पर इस स्थान को वरदान दिया कि यहां पर जो भी व्यक्ति श्राद्ध करेगा उसे प्रेतयोनी में नहीं जाना पड़ेगा एवं उनकी कई पीढ़ियों के पितरों को मुक्ति मिल जाएगी। पुराणों में बताया गया है कि उत्तराखंड की धरती पर भगवान बद्रीनाथ के चरणों में बसा है ब्रह्मकपाल। अलकनंदा नदी ब्रह्मकपाल को पवित्र करती हुई यहां से प्रवाहित होती है। इस स्थान के विषय में मान्यता है कि इस स्थान पर जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर्म होता है उसे प्रेत योनी से तत्काल मुक्ति मिल जाती है और भगवान विष्णु के परमधाम में उसे स्थान प्राप्त होता है। जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है उसकी आत्मा व्याकुल होकर भटकती रहती है। ब्रह्म कपाल में अकाल मृत्यु प्राप्त व्यक्ति का श्राद्ध करने से आत्मा को तत्काल शांति और प्रेत योनी से मुक्ति मिल जाती है। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के समाप्त होने के बाद पाण्डवों को ब्रह्मकपाल में जाकर पितरों का श्राद्ध करने का निर्देश दिया था। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा मानकर पाण्डव बद्रीनाथ की शरण में गए और ब्रह्मकपाल तीर्थ में पितरों एवं युद्ध में मारे गए सभी लोगों के लिए श्राद्ध किया।
ब्रह्मकपाल में पिंडदान को उमड़े श्रद्धालुओं की भीड़
भू-बैकुंठ धाम भगवान बदरीविशाल की नगरी में स्थित ब्रह्मकपाल पर आज पितृ विसर्जन को श्रद्धालुओं की रिकॉर्ड भीड़ उमड़ी। पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन पड़ने के साथ ही श्राद्ध पक्ष का समापन हो गया है। इस दौरान देशभर से आये श्रद्धालुओं ने अपनी दिवंगत परिजनों की याद में तर्पण और पिंडदान किया है। आज शनिवार पितृ पक्ष की समाप्ति के दिन पितृ विसर्जन अमावस्या के अवसर पर बदरीनाथ स्थित ब्रह्मकपाल में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने तर्पण एवं पिंड दान किया। इस दौरान 29 सितंबर से शुरू हुआ पितृ पक्ष आज शनिवार को समाप्त हो गया। श्री बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ ने बताया कि इस दौरान पितृ पक्ष में आज तक बदरीनाथ मंदिर में दो लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन को पहुंचे। शुक्रवार तक यह संख्या 1 लाख 91 हजार 999 थी। इस दौरान लगभग चालीस हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने पिंडदान-तर्पण किया।
देशभर में पिंडदान के प्रमुख स्थान
कहा जाता है कि भगवान राम और देवी सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था। इसके अलावा श्राद्ध के लिए त्र्यम्बकेश्वर, हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ सहित 60 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है। लेकिन भू बैकुंठ धाम बद्रीनाथ में ब्रह्मकपाल पर पिंडदान का महत्व काफी है।