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उत्तराखंड में पालकी से अस्पताल ले जाते वक्त महिला ने रास्ते में जन्मा बच्चा, 10 किमी पैदल चलने के बाद लौटे गांव

देहरादून। उत्तराखंड में खराब स्वास्थ्य सेवा का खामियाजा आज भी ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। खासकर बीमार और प्रसव पीड़ा से कराह रही महिलाओं को कई बार जिंदगी और मौत से जूझना पड़ता है। ताजा मामला चमोली जनपद के ठेठ पाणा (इराणी) गांव का है। यहां एक महिला को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। गांव और आसपास डॉक्टर तो दूर नर्स तक भी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में ग्रामीणों ने महिला को कुर्सी की पालकी में बिठाकर 10 किमी पैदल और करीब 40 किमी सड़क मार्ग से गोपेश्वर अस्पताल ले जाने का निर्णय लिया। लेकिन 5 किमी पैदल दूरी तय होते ही महिला की प्रसव पीड़ा बढ़ गई। इस पर साथ चल रहे लोगों ने महिला को रास्ते में ही प्रसव करा दिया। गनीमत रहा कि रास्ते में प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा सुरक्षित है। इसके बाद बिना इलाज के ही ग्रामीण महिला को वापस पांच किमी पैदल चलकर गांव पहुंच गए। लेकिन महिला के इस प्रसव ने स्वास्थ्य सेवाओं पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।

जिले के दशोली कासखंड की सुदूरवर्ती ग्राम पंचायत पाणा गांव तक सड़क सुविधा न होने का खामियाजा आज भी यहां के ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। आज गांव की एक महिला को प्रसव पीड़ा के बाद कुर्सी की पालकी बनाकर 10 किमी तक पैदल ही ग्रामीणों ने सड़क तक पहुंचाने की कोशिश की। लेकिन पैदल मार्ग की पगडंडी की थकान और मुश्किलों ने 5 किमी सफर के बाद नंदी देवी ने रास्ते में बच्चे को जन्म दे दिया। ग्रामीण भरत सिंह ने बताया कि उनकी पत्नी नंदी देवी को सुबह प्रसव पीड़ा शुरू हुई। गांव और आसपास कोई स्वास्थ्य सेवा नहीं है। गांव में एक मात्र आशा के भरोसे ही लोग रहते हैं। इस पर भरत सिंह ने अपने रिश्तेदारों को साथ लेकर पत्नी को गोपेश्वर अस्पताल ले जाने का निर्णय लिया। इसके लिए कुर्सी की पालकी बनाई। लेकिन 5 किमी कठिन पहाड़ी पगडंडी के बाद महिला का रास्ते में प्रसव हो गया। इस दौरान न महिला को कोई इंजेक्शन, साफ-सफाई की व्यवस्था हुई और न ही बच्चे की नाल काटने और जरूरी इलाज की व्यवस्था थी। ऐसे में ग्रामीणों ने महिला और बच्चे को वापस गांव ले गए। इधर, इस मामले में सीएमओ चमोली से जानकारी लेने की कोशिशें की गई। लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।

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