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उत्तराखंड के कीवी मैन भवान सिंह कोरंगा दिखा रहे हैं किवी उत्पादकों को नई राह

हर साल लाखों के फल और पौध पैदा करते हैं कोरंगा - आज कपकोट का शामा गांव बन गया है कीवी विलेज - गांव में तीन कीवी क्लस्टर हैं जिनमें करीब डेढ़ दर्जन किसान कीवी उत्पादन कर रहे हैं - इस वर्ष करीब 10 लाख रुपए की कीवी उत्पादन किया और 20 लाख के पौधे तैयार हैं, उनकी पौधशाला में - अपने बाग में आने वाले युवाओं को निःशुल्क प्रशिक्षित और प्रेरित करते हैं, भवान सिंह

विजेन्द्र रावत, बागेश्वर।

जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर कपकोट विकास खंड के अन्तर्गत पड़ता है शामा गांव। आज शामा गांव ने अपनी पहिचान किवी गांव के रूप में बना ली है।
इसका काफी कुछ श्रेय गांव के कीवी उत्पादक 74 वर्षीय बागवान भवान सिंह कोरंगा को जाता है जो पिछले दो दशक से कीवी मिशन से जुटे हैं।आज उनके और उनके कीवी का डंका पूरे क्षेत्र में है जिससे उनका सारा माला स्थानीय बाजारों सहित हल्द्वानी की मंडी में ही बिक जाता है। उनकी कीवी, साइज और स्वाद में हिमाचल प्रदेश की कीवी को टक्कर दे रही है। इस साल कितनी आय हुई, संकुचाते हुए कोरंगा बताते हैं कि करीब सौ कुन्तल, जो करीब दस लाख में बिक गया, चूंकि वे हर साल बगीचे में नये पौध लगाकर बाग का विस्तार करते हैं इसलिए हर वर्ष उत्पादन में वृद्धि हो रही है।

20 लाख की पौधशाला भी तैयार

उनकी कीवी पौधशाला में कीवी के करीब दस हजार पौधे तैयार हैं, जिनका बाजार में कीमत 18 से 20 लाख रुपए तक होगी।इसमें एक अच्छी बात यह है कि बाग से आय का करीब 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा बाग के रख-रखाव व फलों की तुड़ाई वह पैकिंग आदि पर खर्च होता है जिससे स्थानीय महिलाओं को रोजगार मिलता है। इस प्रकार इस बाग की आय से हमारे सहित गांव के कई चूल्हे जलते हैं। शामा गांव में कीवी के तीन क्लस्टर हैं जिनमें करीब डेढ़ दर्जन किसानों ने कीवी के बाग लगाए हैं और सभी अच्छा स्वरोजगार कर रहे हैं। आसपास के गांवों में अब कई लिखे पढ़े युवा कीवी की बागवानी जुड़ रहे हैं, जो आधुनिक तकनीक खोज रहे हैं। ऐसे ही क्षेत्र के एक युवा कृष्ण कोमाल्टा ने कीवी का शानदार बाग तैयार किया है।

हिमाचल से लाये थे पौधे

कीवी के फल को पहाड़ की खेती के सबसे बड़े शत्रु बंदर देखते तक नहीं है क्योंकि इसके फलों के बाहर रेसे होते हैं जो बंदरों के गले में फंस जाते हैं जिससे उन्हें बेहद कष्ट होता है। उन्हें याद है, जब उनके चचेरे भाई गोविन्द सिंह कोरंगा 2008 में हिमाचल प्रदेश से कीवी के चार पौधे लाए थे, बस उन्हीं पौधों की करामात से आज उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है, आज उनके बाग में देश के नामी कृषि संस्थाओं से लाए गये पौधे फल दे रहे हैं। उनमें से बेहतर फल देने वाले फलों के पौधों से वे नर्सरी तैयार करते हैं।

बाग को देखकर पूरा परिवार हुआ प्रेरित

इस बाग को वे और उनके पुत्र देखते हैं, जबकि परिवार के अन्य लोगों ने बागवानी से प्रभावित होकर लालकुआं क्षेत्र में लीची और आम का एक और बाग तैयार किया है वह भी फल देने लगा है। उनका कहना है कि उत्तराखंड जैसे विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य के लिए बागवानी सबसे बड़ा माध्यम है जो हमारे युवाओं के पलायन को आसानी से रोक सकता है। उनके बाग में सरकारी योजनाओं व सामाजिक संस्थाओं द्वारा ग्रामीणों को प्रशिक्षण के लिए लाया जाता है जिन्हें वे प्रशिक्षण देते हैं। कोरंगा जी, उनके पास आने व उनसे सम्पर्क करने वाले लोगों को निःशुल्क सलाह देते हैं। आज भी हमारे देश में आधे से ज्यादा कीवी का विदेशों से आयात होता है, इसलिए इसका देश में ही सबसे बड़ा बाजार उपलब्ध है। उत्तराखंड बागवानी विभाग के कीवी मिशन की सराहना करते हुए उनका कहना है कि इसके लिए प्रशिक्षण व बेहतरीन किस्म के पौधों की सबसे ज्यादा जरूरत है। बाकी काम राज्य के होनहार युवा खुद कर लेंगे।उनका मानना है आज हमारे स्कूल व कालेजों की पढ़ाई से सिर्फ बेरोजगारों की फौज खड़ी हो रही है यदि राज्य के शिक्षा संस्थाओं में बागवानी जोड़ दिया जाए तो राज्य का कायाकल्प हो सकता है।
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(संपर्क, कीवी मैन भवान सिंह कोरंगा-+919411315778)

(लेखक उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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