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बद्रीनाथ में छ: माह मानव व छ: माह देव पूजा की है परंपरा, जनिए कैसी होती है भगवान बद्रीविशाल की पूजा

 बद्रीनाथ धाम शुरू हुई मानव पूजा

देवेंद्र रावत, बद्रीनाथ।

भू बैकुंड बदरीनाथ धाम के कपाट विधि विधान से श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी ने पूजा अर्चना के बाद ठीक छ: बजकर 15 मिनट पर कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले गए । कपाट खुलने के अवसर पर भगवान बदरीविशाल को शीतकाल के दौरान औढ़ाया गया घी से लेपित उन के कंबल का प्रसाद वितरित हुआ। इस दौरान श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रही। इसी मूर्हत पर भविष्य बदरी मंदिर के भी कपाट खुल गए है। भविष्य बदरी का मंदिर जोशीमठ नीती मार्ग पर भविष्य बदरी गांव में है।

तड़के से ही बदरीनाथ के कपाट खोलने की प्रक्रिया शुरू हुई। सेना के बैंड की मधुर ध्वनि पर सिंह द्वार के सामने श्रद्धालु भजन गाकर कपाट खुलने के उत्सव को यादगार बना रहे थे। रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी विधिविधान से पूजा अर्चना के बाद कपाट खोले। रावल द्वारा स्त्री वेश धारण कर गर्भ गृह से सर्वप्रथम मां लक्ष्मी को परिक्रमा स्थल में लक्ष्मी मंदिर में विराजमान किया गया ।तदोपरांत उद्धव जी व कुबेर जी , करूड जी को गर्भ गृह में स्थापित किया गया। शंकराचार्य जी की गद्दी को मंदिर परिक्रमा स्थल पर विराजमान किया गया। कपाट खुलने के साक्षी बनने के लिए तड़के से ही सिंहद्वार से श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लग गई थी। ठंड के बाद भी श्रद्धालुओं में अपार उत्साह देखा गया। बदरीनाथ धाम नारायण के जयकारों से गूंजायमान था। मंदिर में कपाट खोलने की प्रक्रिया के दौरान धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल सहित बेदपाठियों ने मंत्रोचारण किया। इस दौरान श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय , ज्योतिमठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि स्वामी अवमुक्तेश्वरानंद, पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार सहित कई विशिष्ट व्यक्तियों ने दर्शन किए ।
कच्छ से पैदल यात्रा कर आए दर्शनों के लिए। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने पर ऐसे भी साधू संत दर्शनों के लिए आए थे जो मीलों पैदल चलकर यात्रा कर आए हैं। महंत श्री हरिदास जी महाराज, महंत कच्छी आश्रम, गुजरात के नेतृत्व में श्रद्धालु गौ रक्षा, विश्वशांति के संकल्प के साथ कच्छ, गुजरात से पदयात्रा करते हुए बद्रीनाथ धाम पहुंचे । जिन्होंने कपाट खुलने के अवसर पर दर्शन किए ।

छ: माह मानव व छ: माह देव पूजा की है परंपरा

बदरीनाथ धाम को भू-वैकुंठ कहते हैं। यहां पर नारायण योग मुद्रा में विराजमान हैं। शास्त्र मान्यता है कि नारायण की पूजा छह माह मानव व छह माह देवताओं की ओर से नारद जी करते हैं। शीतकाल में यहां के कपाट बंद होने के बाद देव पूजा होती है। इस दौरान नारायण की पूजा मानव पांडुकेश्वर व ज्योतिमठ के नृसिंह मंदिर में होती है। बदरीनाथ धाम को अंतिम मोक्ष धाम भी माना गया है। बदरीनाथ मंदिर में भगवान नारायण की स्वयंभू मूर्ति है। भगवान योग मुद्रा में विराजमान हैं। बदरीनाथ की पूजा को लेकर दक्षिण भारत के पुजारी ही पूजा करते हैं। जिन्हें रावल कहते हैं। मूर्ति को छूने का अधिकार भी सिर्फ मुख्य पुजारी को ही है।
बदरीनाथ का माहात्म्य उत्तराखंड के चमोली जनपद में समुद्रतल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित बदरीनाथ धाम। विष्णु पुराण, महाभारत और स्कंद पुराण में इस धाम को देश के चार धामों में सर्वश्रेष्ठ बताया है। सातवीं से नवीं सदी के मध्य हुआ मंदिर का निर्माण मान्यता है कि बदरीनाथ मंदिर का निर्माण 7वीं से 9वीं सदी के मध्य हुआ। मंदिर शंकुधारी शैली में बना है। 15 मीटर ऊंचे इस मंदिर के शिखर पर गुंबद है। मंदिर के गर्भगृह में श्रीविष्णु के साथ नर नारायण की ध्यानावस्था में हैं

शालिग्राम पत्थर से बनी श्रीविष्णु की मूर्ति

श्रीविष्णु की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है और यह एक मीटर ऊंची है। मान्यता है कि इस मूर्ति को आदि शंकराचार्य ने 8वीं सदी के आसपास नारद कुंड से निकालकर मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया। आठ स्वयंभू प्रतिमाओं में से एक यह मूर्ति यह मूर्ति श्रीविष्णु की आठ स्वयंभू प्रतिमाओं में से एक है। यह मंदिर श्रीविष्णु के 108 दिव्य मंदिरों में से एक है। हिमालय में वर्ष 1803 में भूकंप आया था। इससे मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था। जयपुर के राजा ने इस मंदिर का पुनरुद्धार किया था।

केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं मंदिर के मुख्य पुजारी

मंदिर के मुख्य पुजारी केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं। इन्हें रावल कहा जाता है। यह व्यवस्था आदि शंकराचार्य ने स्वयं की थी। इस मंदिर को बदरी विशाल के नाम से पुकारते हैं। इसके पास स्थित अन्य चार मंदिरों योग ध्यान बदरी, भविष्य बदरी, वृद्ध बदरी और आदि बदरी के नाम से पुकारते हैं। इन मंदिरों के समूह को पंच बदरी के रूप में जाना जाता है।

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