उत्तराखंड में कम मतदान से अटकी बड़े बोल वाले नेताओं की सांस, दलबदलू भी दिख रहे परेशान
देहरादून। उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों पर हुए 55 प्रतिशत मतदान ने शासन प्रशासन से लेकर राजनीतिक दलों की सांसें अटका दी है। खासकर विधानसभा स्तर पर बड़ी बड़ी हांकने वाले नेताओं का खराब प्रदर्शन कम मतदान से साफ हो गया। अब परिणाम आने के बाद तय हो जाएगा कि कौन कितने गहरे पानी में है। इधर, भाजपा और कांग्रेस के दलबदलू और समर्थन देने वाले नेतओं के क्षेत्र और बूथ पर कितना मतदान हुआ, इसे लेकर भी आंकड़े तैयार होने लगे हैं।
राज्य में स्वीप, जिला प्रशासन और मुख्य चुनाव अधिकारी की तरफ से शत प्रतिशत मतदान को लेकर पूरी ताकत झोंकी गई। नामांकन हुआ तो भाजपा, कांग्रेस समेत सभी दलों ने अपने सामर्थ्य के हिसाब से चुनाव लड़ा। लेकिन मतदान में भारी गिरावट दर्ज होने से सभी हैरान और परेशान हैं। खासकर गढ़वाल और कुमाऊं के पहाड़ी जिलों में 2019 की तुलना में कम मतदान हुआ है। जबकि मैदानी सीटों पर ज्यादा मतदान हुआ है। चुनाव आयोग से मिली जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों पर 55 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे। इनमें टिहरी से बॉबी पंवार और हरिद्वार से उमेश कुमार को छोड़ा सभी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला था। कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान औपचारिकता निभाई तो भाजपा ने पूरी ताकत झोंकते हुए चुनाव अपने पक्ष में कर दिया था। लेकिन मतदान में कम प्रतिशत ने सभी को चौंका दिया है। भाजपा ने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष, यूपी के मुख्यमंत्री, राज्य के मुख्यमंत्री समेत बड़े स्टार प्रचारक बुलाकर चुनाव को काफी दिलचस्प बना दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो रैली और हर स्टार प्रचारक की रैली में उमड़ी भीड़ ने पूरा माहौल भाजपा के पक्ष में बन गया था। लेकिन भीड़ का मतदान में कन्वर्ट न होने से सभी चिंतित हैं। खासकर 5 सीटों पर लगभग 55 प्रतिशत के आसपास मतदान हुआ है। जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में करीब 61.4 प्रतिशत मतदान हुआ था, जो इस बार करीब 6.3 प्रतिशत कम हुआ है। पांच लोकसभा क्षेत्रों की बात करें तो नैनीताल संसदीय सीट पर करीब 59.36, हरिद्वार में 59.01, टिहरी में 51.01, पौड़ी गढ़वाल में 48.79 और अल्मोडा में 44.53 प्रतिशत मतदान हुआ।
विधायक, मंत्री और दलबदलू दिख रहे परेशान
लोकसभा चुनाव में कम मतदान ने सभी को हैरत में डाल दिया है। खासकर सिटिंग विधायक, मंत्री, पूर्व मंत्री, राज्य मंत्री, संगठन के बड़े पदाधिकारी और दल बदलकर भाजपा और कांग्रेस में शामिल हुए नेता जी परेशान दिख रहे हैं। खासकर नेताओं के खुद के बूथ से लेकर क्षेत्र और विधानसभा की परफॉर्मेंस को इस चुनाव में आंका जाएगा। इससे ही इन नेताओं की कद्र और भविष्य की दिशा तय होगी। खासकर टिहरी, पौड़ी और हरिद्वार सीट पर ऐसे बड़े बोल वाले नेताओं की चिंता ज्यादा दिख रही है। इन नेताओं में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने वाले ज्यादा हैं। इन नेताओं को अब मतदान से लेकर परिणाम आने तक परेशान रहना पड़ेगा। परिणाम अच्छा रहा तो ठीक, नहीं तो आगे भी इनको पार्टी में उचित सम्मान के लिए इंतजार करना पड़ेगा।
राज्य में इसलिए कम हुआ मतदान
उत्तराखंड में कम मतदान को लेकर हर किसी का अपना तर्क और मत है। कुछ लोगों का कहना है कि मतदान के दिन शादी, विवाह का मुहर्त, लोगों की व्यस्तता, प्रचार की रफ्तार न पकड़ने जैसे कारण हो सकते हैं। जबकि कुछ का कहना है कि अनुपस्थित, शिफ्ट और डेथ वोटरों के कारण मतदान कम हुआ है। इसके अलावा लोगों को समय पर बीएलओ स्तर से वोटर पर्ची न मिलने के कारण भी मतदान करने नहीं गए। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि चुनाव में दलबदलू के कारण लोगों ने नाराजगी के कारण मतदान नहीं किया है। बहरहाल कारण चाहिए जो भी रहे होंगे, लेकिन मतदाताओं का मूड इस चुनाव में ठीक नहीं था, जो नेताओं पर भारी पड़ता दिख रहा है।