उत्तराखंडसुप्रीम फैसला

उत्तराखंड विधानसभा से हटाए 228 कार्मिकों को सुप्रीम कोर्ट से भी झटका, डबल बेंच का आदेश बरकरार

देहरादून। उत्तराखण्ड विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में हटाये गए तदर्थ कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली। गुरुवार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में न्यायाधीश ने हाईकोर्ट की डबल बेंच के फैसले को बरकरार रखते हुए तदर्थ कर्मियों की याचिका को खारिज कर दिया।

मिली जानकारी के मुताबिक तदर्थ कर्मियों की ओर से वकील विमल पटवालिया ने कोर्ट में पेश याचिका पेश की। न्यायाधीश संजीव खन्ना व सुंदरेश ने मात्र 2 मिनट में ही याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही वकील की ओर से 2016से पहले की गई नियुक्तियों का मसला उठाने पर न्यायाधीश ने बेहद कड़े शब्दों का प्रयोग किया।इस मामले में तदर्थ कर्मियों की ओर से मनु सिंघवी को भी पैरवी करनी थी। लेकिन वो कोर्ट पहुंच नहीं पाए। विधानसभा सचिवालय की ओर से वकील अमित तिवारी ने पैरवी की। इस पूरे मामले में भारत सरकार में सालिस्टर जनरल तुषार मेहता ने कई पहलुओं पर सटीक राय दी। सुप्रीम कोर्ट के आज के इस फैसले के बाद 228 तदर्थ कर्मियों को गहरा झटका लगा है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए स्पीकर ऋतु खंडूडी ने कहा कि उन्होंने तदर्थ कर्मियों के मामले में किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर निर्णय नहीं लिया था। वे सिर्फ न्याय के सिद्धांत पर चल रही थी। और कोटिया कमेटी ने एक एक पहलु पर विचार करके ही रिपोर्ट बनाई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्याय की जीत बताया। गौरतलब है कि बीते 24 नवंबर को हाईकोर्ट ने स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी के 228 तदर्थ कर्मियों को हटाने सम्बन्धी फैसले को सही ठहराते हुए सिंगल बेंच द्वारा तदर्थ कर्मियों को दिए गए स्टे को खारिज कर दिया था। इसके बाद तदर्थ कर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। गुरुवार को आये सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद 228 तदर्थ कर्मियों को भारी झटका लगा। इन तदर्थ कर्मियों की नियुक्ति 2016 से 2021 के बीच हुई थी। पूर्व विस अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल व प्रेम चंद अग्रवाल के कार्यकाल में हुई थी। कुंजवाल ने अपने करीबी रिश्तेदारों की बैकडोर से भर्ती कर दी थी। भाजपा,कांग्रेस समेत अधिकारियों ने भी नियमों के विपरीत अपने रिश्तेदार व करीबी विधानसभा में नियुक्त करवा दिए थे।

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