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उत्तराखंड में विज्ञापन बजट पर सियासी जंग: ग्लोबल पहचान या फिजूलखर्च!

देहरादून। उत्तराखंड सरकार के सूचना एवं प्रचार बजट पर एक बार फिर सियासत गरमा गई है। विपक्ष इसे “फिजूलखर्ची” करार दे रहा है तो सरकार समर्थक इसे “राज्य को ग्लोबल पहचान दिलाने का जरिया” बता रहे हैं।

सरकार का कहना है कि यह बजट केवल विज्ञापनों का नहीं बल्कि सम्पूर्ण प्रचार तंत्र का हिस्सा है, जिसमें डिजिटल मीडिया, डोक्यूमेंट्री, रोड शो, राज्य महोत्सव, पर्यटन प्रचार और जन-जागरूकता अभियान शामिल हैं। एक अनुमान के मुताबिक राज्य का कुल वार्षिक बजट लगभग 1 लाख करोड़ रुपये है। इनमें से यदि 250 करोड़ रुपये सूचना एवं प्रचार पर खर्च किए जा रहे हैं, तो यह केवल 0.25% है। कुछ पत्रकारों का तर्क है कि उत्तराखंड को यदि अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती से स्थापित करना है तो यह हिस्सा और अधिक होना चाहिए। निवेश, पर्यटन और विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए यह अनुपात 2-3% तक होना चाहिए। हालांकि यह सब आलोचना “अधूरी जानकारी और राजनीतिक एजेंडे” से प्रेरित है। उनके अनुसार विज्ञापन और प्रचार बजट से पर्यटन, निवेश और संस्कृति को वैश्विक मंचों पर बढ़ावा मिलेगा।यह खर्च राज्य की ब्रांडिंग और दीर्घकालिक लाभ के लिए है।महज “फोटो छपवाने” का आरोप पूरी तरह भ्रामक है। इधर, विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि सरकार असल मुद्दों से ध्यान हटाकर जनता के पैसे से अपनी छवि चमका रही है। उनका कहना है कि गरीब राज्य में जहां स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार जैसी चुनौतियां हैं, वहां प्रचार पर करोड़ों खर्च करना अनुचित है। योजनाओं का लाभ काम से दिखना चाहिए, न कि विज्ञापनों से। विश्लेषकों के मुताबिक, यह पहला मौका नहीं है जब विज्ञापन बजट पर विवाद खड़ा हुआ हो।पूर्ववर्ती सरकारों में भी प्रचार बजट बढ़ता रहा है। दरअसल, हर दल की सरकार ने मुख्यमंत्री और अपनी योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया है।इसलिए केवल एक दल पर “छवि चमकाने” का आरोप पूरी तरह राजनीतिक अवसरवाद माना जा रहा है। राजनीतिक और आर्थिक जानकारों का मानना है कि छोटे और पर्यटन-निर्भर राज्य के लिए ब्रांडिंग और प्रचार-प्रसार जरूरी है। लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि जनता को लगे कि प्रचार केवल दिखावा नहीं, बल्कि योजनाओं के जमीनी असर को बढ़ाने का माध्यम है।

उत्तराखंड में विज्ञापन बजट पर छिड़ी सियासत फिलहाल थमने का नाम नहीं ले रही। सरकार का दावा है कि यह खर्च राज्य को “ग्लोबल पहचान” दिलाने के लिए आवश्यक है, जबकि विपक्ष इसे “छवि निर्माण की नौटंकी” बता रहा है।
आख़िरकार, यह बहस जनता के मन में वही पुराना सवाल छोड़ जाती है।

250 करोड़ का सवाल हकीकत या हंगामा

राज्य में 1 लाख करोड़ के वार्षिक बजट में 250 करोड़ का विज्ञापन-प्रचार व्यय महज 0.25% है।फिर भी राजनीतिक हलकों में यह बहस गरम है कि क्या यह राज्य की वैश्विक पहचान बनाने का निवेश है?या फिर वास्तव में यह अनावश्यक खर्च है, जैसा विपक्ष आरोप लगा रहा है।

 

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