देहरादून। श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में मैराथन ऑफ सीपीआर कार्डियो पल्मोनरी रिससिटैशन के जरिए बच पायेगा हार्ट अटैक का मरीज। अब्दुल कलाम राष्ट्रीय सीपीआर सप्ताह के तहत मेडिकल कॉलेज श्रीनगर में देश में विभिन्न स्तरों पर दी जानी वाली कार्डियो पल्मोनरी रिससिटैशन ट्रेनिंग मेडिकल कॉलेज में भी चलायी जा रही है। जिसके तहत अस्पताल के डॉक्टरों, कर्मचारियों एवं नर्सिंग स्टाफ को सीपीआर की ट्रेनिंग में दक्ष बनाया जा रहा है।
ट्रेनिंग में एनेस्थीसिया विभाग के एचओडी डॉ. अजेय विक्रम सिंह ने गंभीर परिस्थितियों में हृदय गति रूक जाने के बाद जीवन रक्षा करने के संबंध में अपनाई जाने वाली तकनीक का डाक्टरों, स्टाफ एवं कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया। उन्होने बताया कि सीपीआर इमरजेंसी की हालत में मरीज की जान बचाने के लिए की जाने वाली तकनीक है। मरीज की हृदय गति रूकने के बाद पाँच से दस मिनट में दिमाग मृत हो जाता है। यदि सीपीआर की तकनीक मरीज की हृदय गति रूकने के तुरन्त बाद या पाँच मिनट के अन्दर शुरू कर दी जाती है तो मरीज के बचने की सम्भावना प्रबल हो जाती है। जैसे-जैसे देर होती जाती है, मरीज की बचने की सम्भावनायें भी क्षीण हो जाती है। इसके द्वारा कार्डियक अरेस्ट और सांस न ले पाने जैसी आपातकालीन स्थिति में व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि सीधे शब्दों में कहें तो कई बार किसी व्यक्ति की अचानक सांस रूक जाती है या फिर कार्डियक अरेस्ट की स्थिति में किसी को सांस नही आती है तो सी0पी0आर0 के द्वारा कृत्रिम रूप से हृदय से रक्त संचार प्रवाह को बनाए रखा जाता है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन वाला खून संचारित होता रहता है। इस प्रकार से उसके मस्तिष्क को मृत होने से बचाया जा सकता है और मरीज की हृदय गति एवं सांस को वापस लाया जा सकता है। यदि व्यक्ति की सांस व धड़कन रूक जाती है तो आक्सीजन की कमी से शरीर की कोशिकाएं बहुत जल्द खत्म होने लगती हैं। इसका असर सबसे पहले दिमाग पर पड़ता है। जिससे व्यक्ति की मौत हो जाती है। ऐसी स्थिति में अगर सीपीआर दिया जाता है तो कई जानें बचाई जा सकती हैं। इससे जान बचने की संभावना बढ़ जाती है। एनेस्थीसिया विभाग के एचओडी डॉ. सिंह ने बताया कि कार्डियो पल्मोनरी रिससिटैशन देने की तकनीक हर आम नागरिक को आनी चाहिए। मरीज की हृदय की गति कहीं पर भी रूक सकती है। उस इमरजेंसी की स्थिति में हर एक मिनट मरीज के लिए बहुत ही बहुमूल्य होता है। हृदय गति रूकने और फेफड़ों के सांस लेने की क्रिया बन्द हो जाने की स्थिति में सीपीआर बिना समय व्यर्थ किये ही शुरू कर देनी चाहिए। इससे मरीज के बचने की संभावना कई गुना तक बढ़ जाती है। इस ट्रेनिंग का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक तक पहुँचाना है, ताकि आसपास इस प्रकार की घटना होने पर मरीज की जान को वे स्वयं बचा सकें। प्रशिक्षण दल में डॉ अजेय विक्रम सिंह के साथ असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ वरूण प्रसाद, पीजी छात्र एमबीबीएस डॉ.दिव्यांशु नैथानी व डॉ. शुभ्रजीत बसक मौजूद थे। कहा कि आगामी दिनों में यह ट्रैनिंग श्रीनगर महिला थाना के सभागृह में समस्त पुलिस व अग्निशमन कर्मियों देने के बाद एनसीसी, एनएसएस, स्काउंट एण्ड गाइड तथा स्कूल के छात्रों को भी सीपीआर ट्रेनिंग दी जाएगी।