उत्तराखंड के पारंपरिक स्वाद और परंपरा का उत्सव, श्रीनगर में हुआ मुख्य आयोजन

देहरादून। उत्तराखंड की पारंपरिक फसलों से बनने वाले स्थानीय भोजन को पुनः मुख्यधारा से जोड़ने और नई पीढ़ी को उसके औषधीय व पोषक गुणों से परिचित कराने के उद्देश्य से आयोजित गढ़ भोज दिवस 2025 का मुख्य कार्यक्रम श्रीनगर में धूमधाम से संपन्न हुआ।
राज्यभर के स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों और संस्थानों में आज गढ़ भोज दिवस मनाया गया। जहां कुछ शिक्षण संस्थानों ने अवकाश के कारण सोमवार को ही आयोजन किए, वहीं कुछ स्थानों पर कार्यक्रम कल भी जारी रहेंगे। देश के विभिन्न हिस्सों में बसे प्रवासी उत्तराखंडियों ने भी स्थानीय स्तर पर गढ़ भोज दिवस मनाकर उत्तराखंड की संस्कृति को जीवंत रखा। मुख्य आयोजन में उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजन जैसे चैशू, फंडू, मांडूवे की पूरी, साठी का भात, छेमी की दाल आदि प्रमुख आकर्षण रहे। बच्चों व युवाओं ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं और पारंपरिक परिधानों में लोकगीतों के माध्यम से गढ़ भोज दिवस को जीवंत कर दिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, उत्तराखंड सरकार के मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा कि गढ़ भोज दिवस न केवल हमारी भोजन परंपरा का उत्सव है, बल्कि नई पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक और औषधीय ज्ञान से जोड़ने का सेतु भी है। उन्होंने कहा जाड़ी संस्थान द्वारा वर्ष 2000 से चलाया जा रहा गढ़ भोज अभियान आज राज्य के लोगों को अपने पारंपरिक भोजन के औषधीय गुणों से परिचित करा रहा है। आज उत्तराखंड का भोजन शादी-विवाह, होटल, स्कूल और सरकारी आयोजनों का हिस्सा बन चुका है, यह गौरव का विषय है। मंत्री ने बताया कि राज्य सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए परंपरागत फसलों को प्रोत्साहित कर रही है। सरकार मंडुवे को ₹48.86 प्रति किलोग्राम के भाव पर खरीद रही है, जिससे किसानों को आर्थिक संबल मिलेगा और लोगों को पौष्टिक, स्वास्थ्यवर्धक भोजन उपलब्ध होगा।
विधानसभा अध्यक्ष खंडूड़ी ने किया प्रतिभाग
कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने प्रतिभाग कर गढ़ भोज अभियान की सराहना की और कहा कि यह पहल उत्तराखंड की सांस्कृतिक जड़ों को सशक्त कर रही है। हेमवंती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश सिंह ने कहा कि आने वाले समय में विश्वविद्यालय गढ़ भोज और पारंपरिक अनाजों पर शोध कार्य भी आरंभ करेगा।गढ़ भोज दिवस अब केवल पारंपरिक व्यंजनों का उत्सव नहीं, बल्कि राज्य की कृषि, संस्कृति और स्वास्थ्य को जोड़ने वाला आंदोलन बन चुका है।यह पर्व न केवल मोटे अनाजों के पुनर्जीवन का प्रतीक है, बल्कि उत्तराखंड की जड़ों से जुड़ने, आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ने और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने का संदेश भी देता है।
विरासत को संजोए रखना हमारा संकल्प
गढ़ भोज अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने कहा गढ़ भोज दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी विरासत के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है। हमारे भोजन में जलवायु परिवर्तन से लड़ने की ताकत है, यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और आत्मनिर्भर समाज की नींव रखता है। उन्होंने कहा कि जाड़ी संस्थान वर्ष 2000 से लगातार इस अभियान को आगे बढ़ा रहा है ताकि नई पीढ़ी इन पारंपरिक अनाजों को अपनी थाली में शामिल करे और उत्तराखंड की भोजन परंपरा को देश-दुनिया में पहचान मिले।
इनको किया गया सम्मानित
गढ़ भोज दिवस के अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाले व्यक्तित्वों को गढ़ भोज सम्मान 2025 से सम्मानित किया गया। सम्मानित व्यक्तियों में शामिल हैं प्रसिद्ध रंगकर्मी विमल बहुगुणा, प्रेम बल्लभ नैथानी, पत्रकार गंगा असनोड़ा, सतेंद्र भंडारी, खंड शिक्षा अधिकारी अश्विन रावत को सम्मानित किया गया।