देहरादून में संपन्न हुआ 12वां सतत पर्वतीय विकास शिखर सम्मेलन, “देहरादून घोषणा” अपनाई गई

देहरादून। दून विश्वविद्यालय में इंटीग्रेटेड माउंटेन इनिशिएटिव (IMI) के तत्वावधान में आयोजित 12वां सतत पर्वतीय विकास शिखर सम्मेलन (SMDS-XII) शनिवार को संपन्न हुआ। सम्मेलन में हिमालयी राज्यों से आए विधायकों, विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने हिमालय में बढ़ती आपदाओं, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास की चुनौतियों पर मंथन किया। दो दिवसीय विचार-विमर्श के बाद सम्मेलन का समापन “देहरादून घोषणा” को अपनाने के साथ हुआ, जिसमें सहभागितापूर्ण, प्रकृति-अनुकूल और स्थानीय समुदाय आधारित नीतियों पर बल दिया गया।
उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण की अध्यक्षता में आयोजित माउंटेन लेजिस्लेटर्स मीट (MLM) में उन्होंने कहा कि “हिमालय एक अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ लचीलेपन की आवश्यकता है। केवल विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान के समन्वय से ही आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित भविष्य गढ़ा जा सकता है। मुख्य अतिथि सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि हिमालय में विकास को केवल सड़कों और इमारतों के आधार पर नहीं आँका जा सकता। “सच्चा विकास प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और स्थानीय समुदायों की आजीविका से जुड़ा होना चाहिए।”
सम्मेलन में अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नबम तुकी, उत्तराखंड के विधायक मुन्ना सिंह चौहान, किशोर उपाध्याय, सविता कपूर, आशा नौटियाल, हिमाचल प्रदेश की विधायक अनुराधा राणा, नागालैंड से हेकानी जाखालू और वांगपांग कोन्याक, पूर्व महापौर टिकेंद्र एस पंवार सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने विचार साझा किए।
इस अवसर पर यूकोस्ट (UCOST) के महानिदेशक डॉ. दुर्गेश पंत और प्रख्यात पर्यावरणविद् डॉ. रवि चोपड़ा ने जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन और अनुसंधान के अनुभव साझा किए। सम्मेलन के दौरान जलवायु परिवर्तन अनुकूलन, आपदा तैयारी और जल प्रबंधन पर समानांतर सत्र आयोजित हुए। प्रतिभागियों ने पर्वतीय कृषि-पारिस्थितिकी को मजबूत करने, सुरक्षित बस्ती क्षेत्रों की पहचान करने और जोखिम-संवेदनशील योजना की आवश्यकता पर बल दिया।
सम्मेलन का विशेष आकर्षण स्थानीय उत्पादों की प्रदर्शनी रही, जिसमें उत्तराखंड और हिमालयी राज्यों की सांस्कृतिक व पारिस्थितिक विविधता को प्रदर्शित किया गया।दो दिवसीय इस शिखर सम्मेलन में लगभग 250 प्रतिभागियों ने भाग लिया। चर्चा के अंत में पारित “देहरादून घोषणा” ने हिमालयी राज्यों में सतत, समावेशी और समुदाय-केंद्रित विकास की दिशा में एक सामूहिक संकल्प का आह्वान किया।