धराली आपदा: खीर गंगा की तबाही से 31 दिनों बाद भी जस की तस धराली की तबाही

उत्तरकाशी। धराली ग्राम सभा के ग्रामीणों ने आपदा प्रभावित स्थिति और सरकारी उदासीनता को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि धराली न केवल जनपद का सबसे पुराना और ऐतिहासिक गांव है बल्कि यहां प्राचीन समय में कल्पकेदार मंदिर के 240 मंदिरों का समूह भी स्थित था, जिसका उल्लेख पुराणों तक में मिलता है। यही नहीं, खीरगंगा और गंगा नदी के संगम पर श्याम प्रयोग स्थल तथा जयपुर धर्मशाला का होना इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को दर्शाता है।
ग्रामीणों का आरोप है कि आपदा के बाद बीआरओ द्वारा 18 दिन में भी मात्र 200 मीटर सड़क से मलबा नहीं हटाया जा सका और ऊपर से ही नई सड़क बना दी गई, जबकि पूरी सड़क अब भी मलबे से भरी पड़ी है। एक महीना बीतने के बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि धराली गांव चीन सीमा से मात्र 80 किलोमीटर दूर है और यह क्षेत्र छह महीने तक बर्फ से ढका रहता है, ऐसे में यहां पर सड़क व अन्य व्यवस्थाओं की अनदेखी रणनीतिक दृष्टि से भी चिंता का विषय है।
ग्राम सभा के पूर्व प्रधान जय भगवान सिंह, संजय पंवार, महेश, शैलेंदर पंवार आदि कहना है कि सबसे अधिक देवदार, केल, रई, मुरेंड और भोजपत्र का जंगल भी इसी क्षेत्र में है। प्रभावित भूमि ग्राम सभा के नाम पर दर्ज है, फिर भी सरकार की ओर से ग्रामीणों को कोई ठोस नोटिस या समाधान नहीं दिया गया। ग्रामीणों ने सवाल उठाया है कि जब NGT के नियम अनुसार नदी से 200 मीटर की दूरी के बाद ही पक्के निर्माण की अनुमति है, तो सरकार ने सड़क नदी से मात्र 10–20 मीटर की दूरी पर क्यों बनाई? उनका सुझाव है कि यदि सड़क का नया एलाइनमेंट नदी से 500 मीटर से लेकर 1–2 किलोमीटर ऊपर किया जाए, तो न केवल गांव सुरक्षित रहेंगे बल्कि स्वरोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और नदी–नालों के कटान से भी बचाव हो सकेगा।ग्रामीणों ने सरकार और प्रशासन से जल्द ठोस कदम उठाने की मांग की है।